जिन्न का आतंक

मेरा नाम तबस्सुम है… और आज मैं जो कुछ आप लोगों को बताने जा रही हूँ, इसका एक-एक शब्द बिल्कुल सच है… इतने सालों में हमारे घर में न जाने क्या-क्या हुआ… और हमारी गलती सिर्फ इतनी थी कि हमने अपनों पर सबसे ज्यादा भरोसा किया और उन्हीं अपनों ने ही हमारे साथ धोखा किया… इस बात की शुरुआत होती है साल 2017… 27 मई से… वह रमजान की चाँद रात थी… और मेरी बहन शबाना ने उस रात एक लड़की को जन्म दिया था… डिलीवरी के बाद दीदी शाम के समय घर पर आराम कर रही थी… तभी न जाने कहाँ से एक बिल्ली उनके कमरे की खिड़की पर आ गई… और उसी के बाद से एकदम से दीदी की तबीयत इतनी खराब हो गई कि उन्हें हॉस्पिटल में ले जाना पड़ा… दीदी बिल्ली देखकर इतना डर गई थी कि 3 दिन तक हॉस्पिटल में बेहोश रही… डॉक्टर ने भी जवाब दे दिया था कि यह अब नहीं बचने वाली… लेकिन हमें यकीन था कि शबाना को कुछ नहीं हुआ है… फिर तीन दिन बाद जब उसे होश आया तो घर के सब लोग खुश हो गए… सबको लगा कि अब सब ठीक हो गया है… लेकिन असली परेशानी तो अब शुरू होने वाली थी… और इसके बाद जो हुआ वो हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था…

होश में आने के बाद दीदी ने मम्मी से कहा कि मैं अब ठीक हूँ, आप मेरे बाल बाँध दो… तो मम्मी ने उनके बाल बाँध दिए… इसके बाद दीदी सो गई… दीदी के सोने के बाद मम्मी भी सो गई… लेकिन मम्मी ने दीदी की उंगली में अपना दुपट्टा बाँध दिया था जिससे कि अगर उसे किसी चीज की जरूरत हो तो वह दुपट्टा हिलाकर मम्मी को उठा सके… लेकिन थोड़ी देर बाद ही दीदी लेटे-लेटे जोर-जोर से हिलने लगी और चिल्लाने लगी… दीदी की आँखें बिल्कुल लाल हो गई थीं और उनके सारे बाल भी खुल गए थे… दीदी की आवाज सुनकर डॉक्टर्स भी भागकर उनके पास आए… लेकिन अब दीदी सबके सामने ही बेड के हवा में लटक रही थी… यह देखते ही सब डॉक्टर्स भी डर के मारे पीछे हट गए…

इस बीच मेरे पापा जो हॉस्पिटल में नीचे ग्राउंड फ्लोर पर सो रहे थे… उनको उस समय सपना आया… कोई सपने में उनसे बोल रहा था कि भाग, जल्दी भागकर जा अपनी बेटी के पास नहीं तो देर हो जाएगी… पापा उसी वक्त उठे और बिना कुछ सोचे-समझे भागते हुए तीसरी मंजिल पर दीदी के पास गए तो देखा कि दीदी हवा में हैं… पापा ने जल्दी से उनका हाथ पकड़ा तो हाथ पकड़ते ही वह एकदम से नीचे गिर गई… नीचे गिरने के कुछ ही सेकंड बाद वह उठी और पापा की तरफ देखते हुए बोली… “बचा लिया तूने आज इसे… वरना आज यह मेरी जाती जाती…” इतना कहते ही दीदी फिर से बेहोश हो गई…

इसके बाद डॉक्टर खुद ही पापा से बोले कि आप जिस किसी बाबा को जानते हो उसे यहाँ बुला लो… इनका इलाज करना हमारे बस से बाहर है… तो मेरी मम्मी-पापा और दीदी के ससुराल वाले सब इधर-उधर फोन करके पता करने लगे… हमने मस्जिद में भी दीदी के लिए दुआ करने को कहा… लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा था… फिर एक मेरी नानी मेरी दीदी को देखने आई तो दीदी को देखकर नानी मेरी मम्मी से बोली कि यह लड़की मर जाएगी… तुम लोग जल्दी से इसे लेकर गाँव आ जाओ… मम्मी ने पूछा कि इसे क्या हुआ है तो नानी ने बताया कि इसके ऊपर चौकी चढ़वाई गई है… और इसका बचाना बहुत मुश्किल है… जिनको नहीं पता उनको बता दूँ कि चौकी एक इस तरह का काला जादू होता है जिसमें 40 दिन के अंदर इंसान की मौत हो जाती है… जबकि घरवालों को यही लगता रहता है कि वह बीमार है…

अब हमें यह तो पता चल गया था कि दीदी के साथ कुछ और ही दिक्कत है… लेकिन उनकी हालत ऐसी नहीं थी कि हम उन्हें कहीं ले जा सकें… तो नानी खुद ही गाँव गई और बाबा से ताबीज बनवा के ले आई और उस ताबीज को उनके तकिये के नीचे रख दिया… जिस बाबा ने वह ताबीज दिया था उसने कहा था कि लड़की दो दिन बाद खुद अपने पैरों पर चलकर मेरे पास आएगी… और हुआ भी वैसा ही… दो दिन बाद दीदी अपने आप ही ठीक हो गई, और हम उन्हें लेकर फलौदी नाम के उस गाँव में चले गए… उस बाबा का नाम छोटी वाले बाबा है… उन बाबा ने दीदी का इलाज किया और दीदी एक हफ्ते में ही बिल्कुल ठीक हो गई… लेकिन बाबा ने हमसे एक लाख रुपये लिए थे… क्योंकि दीदी के ऊपर एक जिन्न था जिसे उस बाबा ने पकड़ लिया था… लेकिन जब उनका एक आदमी कब्रिस्तान में उस जिन्न को दफनाने गया तो उस जिन्न ने उनके आदमी को ही मार दिया… दीदी के इलाज में एक आदमी की जान भी चली गई थी… यह बात सुनकर हम लोग बहुत परेशान हो गए… लेकिन दीदी अब बिल्कुल ठीक हो चुकी थी…

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हमने बाबा से पूछा कि यह सब किसने किया… तो उन्होंने बस तीन बातें बताईं… पहले यह कि जिसने यह किया वह 4 औरतें हैं… दूसरी यह कि वह तुम्हारे घर इस लड़की का रिश्ता माँगने आई थी और तुमने उसे रिश्ते के लिए मना कर दिया था… और तीसरी यह कि वह एक दिन तब तुम्हारे घर आई थी जब तुम्हारी लड़की और दामाद दोनों घर पर थे और वह तुम सबको लड्डू खिलाकर गई थी… बस बाबा की बात सुनते ही मम्मी-पापा दोनों समझ गए कि यह कोई और नहीं हमारी चारों बुआ हैं… लेकिन वह चारों बुआ उस समय भी हमारे घर पर ही आ रखी थी… क्योंकि हम दीदी को लेकर बाबा के पास आए हुए थे… और घर में मेहमान आते रहते थे इसलिए उन्हें देखने के लिए वह चारों बुआ हमारे घर पर ही रहती थी…

इसके तुरंत बाद पापा ने उन चारों को बोल दिया कि शबाना अब ठीक हो गई है अब तुम अपने घर चली जाओ… अगले ही दिन वह सब अपने-अपने घर चली गईं… घर पर रहती तो और पता नहीं क्या-क्या करती रहती… दीदी की तबीयत अब ठीक तो हो गई थी लेकिन उनको वह जिन्न अभी भी दिखाई देता था… उनकी वह परेशानी अभी भी ठीक नहीं हुई थी… वह रात में सोते-सोते अचानक से उठकर चिल्लाने लगती… हम सारी-सारी रात उनका हाथ पकड़कर बैठे रहते… मैं उस समय बस 15 साल की थी और मैं उनके लिए अल्लाह से बहुत दुआएँ करती… उनके ससुराल वाले भी उनको हमारे घर पर ही छोड़कर चले गए थे… लेकिन वक्त के साथ धीरे-धीरे हमें इन सब चीजों की आदत पड़ गई… ऐसा नहीं था कि यह सब चीजें होना बंद हो गई थीं… लेकिन अब हम इन सबको इग्नोर करने लगे थे… लेकिन यह हमारी गलती थी… हमें इस बात की खबर ही नहीं थी कि हमारे घर में कौन-कौन सी बलाएँ आकर घुस गई हैं…

फिर साल 2021, 14 नवंबर को दीदी ने एक लड़के को जन्म दिया… बाकी तो सब ठीक चल रहा था लेकिन मेरे पापा के ऊपर 20 लाख रुपये का कर्ज हो गया था… हम मुश्किल से अपना घर चला रहे थे… इस बीच दीदी के ससुराल वालों ने उन्हें फिर से हमारे घर छोड़ दिया था… फिर एक दिन अचानक से मेरी एक बुआ की लड़की हमारे घर आ गई… हम सबको हैरानी हुई कि यह कैसे अचानक से हमारे घर आ गई है… ऊपर से उसकी हालत भी बहुत खराब लग रही थी… असल में उसका डिवोर्स हो चुका था और वह अपने गाँव में अकेली अपने 15 साल के बेटे के साथ रहती थी… हमने यह तो सुना था कि उसे गाँव से भी निकाल दिया गया है… लेकिन वह अब किस तरह की औरत बन चुकी है यह हमें नहीं पता था…

वह हमारे घर 15 दिनों तक रही… जब वह हमारे घर आई तो उसने पापा से कहा कि मामा आपके घर में सब अच्छा हो जाएगा… आपका सारा कर्ज भी उतर जाएगा बस आप अपने घर में एक दिया जला दो… वह बार-बार पापा को दिया जलाने के लिए बोलती थी… लेकिन पापा उसकी बातों में नहीं आते थे… इसी बीच एक दिन मैं ऊपर वाले कमरे में गई तो मैंने चुपके से उसे किसी से फोन पर बात करते सुना… वह किसी से कह रही थी कि यह लोग दिया नहीं जला रहे हैं… अब मैं क्या करूँ… तो दूसरी तरफ जो आदमी था वह बोला कि कुछ भी करो इनके घर में दिया जलवाओ… उसकी बात सुनकर मैं जल्दी से मम्मी के पास आई और उनको सारी बात बताई… लेकिन वह कहते हैं ना जब बुरा वक्त आता है तो अकल पर पत्थर पड़ जाता है… मम्मी ने मेरी बात पर ध्यान ही नहीं दिया… फिर एक दिन मैंने चुपके से उसका पर्स चेक किया तो उसके पर्स में न जाने कितने तावीज़ रखे थे… मैंने वह सब मम्मी को भी दिखाए लेकिन मम्मी को पता नहीं क्या हो गया था, मम्मी उसकी बातों में आ गई और घर में दिया जला दिया… और फिर दिया जलाकर सब लोग सोने के लिए चले गए…

हमारा हर तीन मंजिल का है और ऊपर तीसरी मंजिल पर मेरे बड़े भाई अकेले सोते थे… बाकी सब लोग नीचे वाले फ्लोर पर सोते थे… और बीच वाले फ्लोर पर कोई नहीं सोता था… अब रात में सब लोग सो रहे थे कि तभी 2 बजे के करीब मेरे फोन पर भाई की कॉल आई… मैंने कॉल उठाई… तो भाई बोला कि मुझे बचा लो यह मुझे मार देगी… यह बात सुनते ही पापा उसी वक्त उठे और ऊपर भागे… पापा के पीछे मैं भागी और मेरे पीछे मम्मी… हम तीनों ऊपर पहुँचे तो देखा कि दिसंबर के महीने में भी भाई पसीने से नहा रहे थे… और बस ऊपर छत की तरफ इशारा कर रहे थे… तो पापा जल्दी से छत पर गए… लेकिन छत पर कुछ नहीं था… भाई बुरी तरह डरा हुआ था और रोए जा रहा था… मम्मी ने भाई को गले लगाया और उसे बहलाने लगी… इस बीच मेरी वह बुआ की लड़की वहीं खड़ी थी और यह सब देख रही थी… मेरे तो पैर उस समय इतनी बुरी तरह काँप रहे थे कि मैं आपको बता नहीं सकती… मेरे भाई पिछले कई सालों से वहाँ अकेले सो रहे थे लेकिन उनके साथ ऐसा पहली बार हुआ था…

फिर कुछ देर बाद भाई थोड़ा शांत हुए तो उन्होंने बताया कि रात 12 बजे के करीब वह फोन रखकर सोने के लिए लेट गए थे… लेकिन तभी भाई को आवाज आई कि जैसे कोई ऊपर छत से चलता हुआ आया है और बाहर सीढ़ियों पर आकर बैठ गया… भाई को लगा कि शायद हम उनके साथ मजाक कर रहे हैं… वह आवाज लगाकर बोले भी… कि मुझे मत डराओ… जाओ यहाँ से… लेकिन तभी उनको बहुत गंदी बदबू आने लगी और एक अजीब सी गुर्राने की आवाज आई… और तभी भाई ने देखा कि एक औरत जिसने सफेद साड़ी पहनी हुई थी वह सीधा उनके बेड के पास उनके सिर की तरफ आकर नीचे फर्श पर बैठ गई… यह देखकर भाई बुरी तरह डर गए और डर के मारे दरूद शरीफ पढ़ने लगे… जब भाई दरूद पढ़ रहे थे वह चिल्लाने लगी और जोर-जोर से जमीन पर हाथ मारने लगी… उसने इतनी जोर से जमीन पर हाथ मारा कि फर्श में भी गड्ढा हो गया था… तभी भाई ने हमें फोन किया और हम उनके पास पहुँच गए… भाई तब 21 साल के थे…

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इसके बाद भाई पूरी रात पापा के साथ ही सोए… फिर मम्मी जब नीचे आई तो नीचे आते ही बुआ की लड़की पर चिल्लाने लगी कि तूने यह क्या करवा दिया है… लेकिन उसने हमें यह झूठ बोल दिया कि जो कुछ भी पहले से तुम्हारे घर में था वह अब सामने आ गया है… इसमें डरने वाली कोई बात नहीं है… इसके बाद हम पूरी रात नहीं सो सके… ऐसे ही लेटे-लेटे सुबह के 7 बज गए… हम सब तब तक बिस्तर में ही लेटे हुए थे… कि तभी अचानक शबाना दीदी चिल्लाने लगी… बोली वह औरत मेरे चारपाई पर आकर बैठ गई है और बाबू को ले जा रही है… हम सबको अब यह समझ आ गया था कि यह जो कुछ भी है दिन में हमें परेशान कर रहा है…

फिर अगले दिन शाम करीब 8 बजे हम सब बैठकर चाय पी रहे थे कि तभी शबाना दीदी का चाय का कप जो कि बेड के साइड में रखा था… वह कप बाबू से 2-3 हाथ की दूरी पर था… वह कप एकदम से ऐसे गिरा जैसे किसी ने जान-बूझकर उसके ऊपर फेंका हो… बाबू अभी बस एक महीने का था… और गर्म चाय गिरने से उसकी बॉडी सारी जल गई… वह जोर-जोर से रोने लगा… यह देखते ही दीदी बोली कि मुझे इस घर से दूर जाना है मैं इस घर में नहीं रह सकती… हम सब खुद उस घर में नहीं रहना चाहते थे…

इस बीच मेरी बुआ की लड़की जो हमारे घर में आई हुई थी उसके बेटे के साथ भी पैरानॉर्मल चीजें होने लगी… वह अब समझ गई कि वह घर में जो भी जिन्न लेकर आई थी वह अब उसे भी नुकसान दे रहा है… वह उसी दिन शाम 6 बजे अचानक हमारे घर से चली गई… हमें भी बहुत हैरानी हुई कि यूँ अचानक से कैसे जा रही है… क्योंकि उसके पास पैसे भी नहीं थे… हम सोच रहे थे कि यह इसे क्या हो गया है, हमें इस परेशानी में छोड़कर जा रही है जबकि वह तो हमारी हेल्प करने वाली थी…

जिस दिन मेरी कौजिन गई उसी दिन मेरे मां-बाप दूसरी संपत्ति पर गए थे। हमें सभी लोग बोलते थे कि आप अपने दूसरे घर में चले जाइए। लेकिन समस्या यह थी कि हम जहाँ भी जाते थे वहीं जिन वहाँ भी आ जाता था। उस रात मेरी कौजिन के जाने के बाद हम सभी सोने के लिए लेट गए। मैं, मां और दीदी जमीन पर सो रहे थे और दीदी के दो बच्चे हम तीनों के बीच में थे। हम उस जिन से बहुत डरे हुए थे कि हमने कमरे में हल्की हल्की आग भी जला रखी थी क्योंकि आग से ये बुरी शक्तियाँ डरती हैं। कुछ देर बाद जब सभी सो गए। तो बबू अचानक रोने लगा। रात 1 बजे की बात होगी। दीदी उठकर बैठ गई और बबू को चुप करवाने लगी लेकिन वह बहुत बुरी तरह से रो रहा था, और सबसे हैरानी की बात यह है कि हम सभी बबू के रोने की आवाज सुन रहे थे लेकिन कोई भी उठ नहीं पा रहा था। तभी दीदी ने मां का चेहरा देखा तो मां की आँखें पूरी तरह से लाल हो रही थीं और मां अजीब ही तरह से मुस्कुराते हुए दीदी को देख रही थी। दीदी ने मां को आवाज दी। मां, मां। तो अचानक मां ने दीदी का हाथ पकड़ लिया और अजीब सी आवाज में बोली। ये बच्चा मुझे दे। बच्चा दे मुझे। और मां दीदी से बच्चा छीनने लगी, दीदी बहुत जोर से चिल्लाई। उसकी चीख सुनकर हम सभी उठ गए। मां भी अब नॉर्मल हो गई थी और रो रही थी। पापा चिल्ला कर बोला कोई है यहाँ। चलो यहाँ से। इसके बाद हम सभी पूरी रात बैठे रहे। किसी को नींद नहीं आ रही थी। हमने टीवी में कुरान लगा लिया था और जब मां और दीदी दोनों शांत हुई तो मां ने बताया कि मैंने अपने मुँह पर हाथ रख कर लेटी हुई थी तब उन्हें कमरे में एक बुढ़िया महिला चलती दिखाई दी। वह महिला झुक कर चल रही थी, उसके सर पर छोटे-छोटे बाल थे जो खड़े थे और उसका एक हाथ उसकी कमर पर था। वह आकर मां के सामने खड़ी हो गई और उनके मुँह के अंदर गुस गई। उसके बाद उन्हें कुछ भी याद नहीं रहा। इसके बाद हम सभी एक दूसरे का हाथ पकड़ कर बैठे रहे। जब सुबह हुई तो हमें ऊपर जाने में भी डर लग रहा था। तभी दीदी ने देखा कि बबू के सर के बाल किसी ने नोच लिए हैं और उसके सिर से खून भी निकल रहा है। फिर मां ने इस बात को नानी को बताया तो नानी ने कहा कि तुम बहुत दिनों से परेशान हो और तुमने हमें भी नहीं बताया। तुम सभी अब गाँव आ जाओ। लेकिन हम चाहे भी नहीं जा सकते थे क्योंकि हमारे पास गाँव जाने के लिए एक रुपया भी नहीं था। ऊपर से मुझे पता नहीं क्या हो गया था पानी भी पी रही थी तो वह भी उलटी में निकल रहा था। फिर नानी ने एक बाबा का नंबर दिया।

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