मेरा नाम पॉल है। और मैं अमेरिका के “द ग्रेट स्मोकी माउंटेंस” नाम के एक बहुत बड़े जंगल के फॉरेस्ट सर्विसेज डिपार्टमेंट में काम करता हूं। यूं तो मुझे इन जंगलों में काम करते हुए 30 साल से ज्यादा का वक्त हो गया है। और इन तीस सालों में मैंने न जाने कितने खतरनाक मामलों का सामना किया है। लेकिन एक बार मेरे साथ कुछ ऐसा हुआ जिसे मैं आज तक नहीं भुला सका हूं। आज तक मैंने इस बारे में कभी किसी को नहीं बताया। न अपने किसी दोस्त को, न अपने साथ काम करने वाले किसी दूसरे रेंजर को। इसलिए नहीं कि लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे, बल्कि इसलिए कि मैं बस इस बात को खुद ही नहीं मानना चाहता था कि वो सब कुछ जो मेरे साथ हुआ वो सच था। इतने सालों तक मैं अपने आप को बस यही समझाता रहा कि वो बस एक बुरा सपना था। लेकिन अब मेरी रिटायरमेंट के नजदीक, जब मैं जानता हूं कि अब मैं हमेशा के लिए इन जंगलों से दूर चला जाऊंगा, अब शायद मैं इस बारे में बात करने के लिए तैयार हूं।
यह करीब 29 साल पहले की बात है। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट जॉइन किए मुझे मुश्किल से 6-7 महीने ही हुए थे। मैं जवान था, शरीर में गरम खून था, इसलिए किसी चीज से डरता भी नहीं था। आज सोचता हूं तो लगता है कि मैं कितना बड़ा बेवकूफ था।
तो एक बार यूं हुआ कि सर्दियों के समय जंगल को कुछ समय के लिए पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया था। क्योंकि उन दिनों इतनी ज्यादा बर्फ गिर रही थी कि जंगल में कैंपिंग करना या घूमने-फिरने जाना बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं था। लेकिन फिर भी कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हमेशा तमाम चेतावनियों को नज़रअंदाज़ करके जंगल के अंदर चले ही जाते हैं।
तो उस दिन हमें ऐसे ही एक ग्रुप की रिपोर्ट मिली। पता चला कि वो लोग कुछ दिन पहले जंगल में घूमने गए थे, लेकिन 10 दिन बाद तक भी वो लोग घर वापस नहीं आए। जबकि उन्हें 2 दिन बाद ही घर वापस आ जाना था। तो जैसा कि इस तरह के हर केस में होता है, उन तीनों लोगों को ढूंढने के लिए भी सर्च ऑपरेशन चलाया गया।
आमतौर पर इस तरह के सर्च ऑपरेशन में कई बार हमारे साथ सिविलियन्स भी वॉलंटियर करते हैं। लेकिन चूंकि वो सर्दियों का समय था और मौसम वैसे ही इतना खराब था, इसलिए इस सर्च ऑपरेशन में किसी सिविलियन को नहीं लगाया गया। बल्कि हमें, फॉरेस्ट रेंजर्स को ही जंगल के अलग-अलग इलाकों में उन्हें ढूंढने के लिए भेजा गया।
जिस वक्त मैं जंगल में सर्च मिशन के लिए गया, उस वक्त भी हल्की-हल्की बर्फ पड़ रही थी। लेकिन हमें बर्फ के बीच रेस्क्यू मिशन करने की ट्रेनिंग दी गई थी और मेरे पास अपने उपकरण भी थे, इसलिए डरने वाली कोई बात नहीं थी। मैं अकेला ही अपना रेडियो फोन हाथ में लिए जंगल के अंदर जा रहा था।
जैसे मैंने बताया कि तब मुझे जंगल में काम करते 7-8 महीने ही हुए थे। और ऐसे मौसम में जंगल के इतना अंदर मैं पहले कभी नहीं आया था। इसलिए जंगल के बीच बर्फ की मोटी चादर के ऊपर चलते हुए जंगल कितना शांत लग रहा था, मैं बता नहीं सकता।
बहुरूपी जंगल। बाहर से दिखने में कितना शांत और सुंदर लगता है। लेकिन अंदर से ये उतना ही खतरनाक और भूखा होता है।
अब मैं जिस रास्ते पर जा रहा था वह जंगल का एक बहुत ही मशहूर कैंपिंग स्पॉट था। ज्यादातर घूमने आने वाले लोग जंगल के उसी इलाके में कैंपिंग के लिए जाते थे। और वो रास्ता ऐसा था कि आगे चलकर वो रास्ता तीन अलग-अलग रास्तों में बंट जाता था। और हमें उन कैंपर्स के घरवालों से यह सुराग मिला था कि इस बार वो लोग किसी नए इलाके में कैंपिंग करने जाने का प्लान बना रहे थे।
इसलिए मैंने उस मशहूर कैंपिंग स्पॉट को छोड़कर जो तीसरा वाला रास्ता था, जहां सबसे कम लोग कैंपिंग के लिए जाते थे, उस रास्ते की तरफ जाने लगा। मुझे पूरा यकीन था कि वो लोग इसी रास्ते पर आए होंगे। और मेरा शक सही भी साबित हुआ। उस रास्ते पर करीब 500 मीटर दूर जाने के बाद एक जगह मुझे ज़मीन पर कुछ कदमों के निशान बने दिखाई दिए।
देखते ही मैं समझा कि ये पक्का उन्हीं लोगों के कदमों के निशान होंगे, क्योंकि ऐसे मौसम में और कोई यहां आ नहीं सकता था। लेकिन फिर जब मैंने ध्यान से उन निशानों को देखा, तो समझ आया कि ये किसी इंसान के कदमों के निशान नहीं थे। वो पैर बहुत चौड़े थे। और सबसे अजीब बात यह थी कि वो निशान अचानक से रास्ते के बीच आ गए थे। और करीब 20 कदम जाने के बाद अचानक से गायब भी हो गए थे, जैसे कि कोई सीधे आसमान से वहां कूदा और फिर कुछ दूर चलने के बाद आसमान में ही उड़ गया। लेकिन ऐसा कैसे हो सकता था?
मुझे और आगे जाना था।
अब क्या हुआ कि करीब 40 मिनट और आगे चलने के बाद मुझे एक जगह उनका टेंट दिखाई दे गया। टेंट के अंदर सारा सामान बिल्कुल अच्छे से रखा था। स्लीपिंग बैग्स, बैकपैक्स, एक छोटा सा स्टोव भी रखा था। कहीं से भी किसी तरह की स्ट्रगल का कोई निशान नहीं था। इतनी ठंड में, ऐसे मौसम में कोई अपना सामान छोड़कर टेंट से नहीं जाता। कम से कम वो इंसान तो नहीं जाएगा जो जिंदा रहना चाहता है।
और तभी मुझे टेंट के पीछे की तरफ कुछ खून की बूंदें पड़ी दिखाई दीं। वो बूंदें टेंट के पीछे जंगल की तरफ जा रही थीं। मैंने झट से अपनी गन निकाल ली और पीछे की तरफ जाने लगा। लेकिन पीछे कुछ दूर जाने के बाद खून दिखाई देना बंद हो गया। शायद बर्फ के नीचे छिप गया होगा।
मैंने जल्दी से रेडियो फोन निकालकर अपने बेस पर कॉल करके बताया कि मुझे उनका टेंट मिल गया है और खून भी मिला है। और आगे ढूंढने के लिए हमें स्निफर डॉग्स, मतलब खोजी कुत्तों को बुलाने की जरूरत पड़ेगी।
अब समस्या ये थी कि बेस से दूसरी टीम को यहाँ पहुँचने में कम से कम एक घंटा लगने वाला था। इस बीच मैं वहीं आस-पास घूमता हुआ टाइमपास कर रहा था। और मैं आपको सच बता रहा हूँ, एक बार के लिए मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी मम्मी ने मुझे आवाज़ दी हो। बिलकुल साफ-साफ मैंने वो आवाज़ सुनी थी। मेरी मम्मी की चार साल पहले डेथ हो चुकी थी। आवाज़ सुनते ही मेरा रोम-रोम खड़ा हो गया। ये वो पल था जब मेरे दिल में एक अजीब सा डर आ गया। पता नहीं क्यों, ऐसा लग रहा था जैसे कोई मुझे लगातार देखे जा रहा है। कोई जानवर या कोई इंसान नहीं, बल्कि कुछ और। मतलब, मैं आपको शब्दों में नहीं बता सकता। ऐसा लग रहा था जैसे वहाँ के पेड़, झाड़ियाँ, पहाड़ सब मेरे ऊपर नज़र रखे हुए हैं। मेरी हर हरकत को नोटिस कर रहे हैं।
कुछ ही देर बाद दूसरी टीम भी वहाँ पहुँच गई। साथ में एक स्निफर डॉग भी था। डॉग हैंडलर ने अपने डॉग को टेंट में ले जाकर उन कैंपर्स की गंध दी तो गंध लेते ही डॉग सीधे उन खून के निशानों की तरफ होता हुआ आगे जंगल में जाने लगा। लग रहा था जैसे उसे बहुत तेज़ गंध मिल गई है और कुछ ही देर में वो उनके पास पहुँच जाएगा। लेकिन तभी, दो मिनट बाद ही पता नहीं उस डॉग को क्या हुआ, वो इतनी बुरी तरह डर गया कि आगे कदम ही नहीं बढ़ा रहा था। उसकी दुम टांगों के बीच में घुस गई थी। डॉग हैंडलर ने बताया कि उसने आज तक अपने डॉग को ऐसा करते नहीं देखा था। पता नहीं वो डॉग किस चीज़ से इतना डर रहा था।
हमने उसे बहुत कोशिश की कि आगे खींचकर ले जाएँ, लेकिन वो नहीं जा रहा था। तो आखिर में हमने फैसला किया कि हम दो रेंजर्स ही खुद आगे जाकर चेक करके आते हैं। काश हम ऐसा न करते। काश हम वहीं से उल्टा अपने बेस पर वापस चले जाते। क्योंकि उसके बाद मैंने जो देखा, वो मैं आज तक नहीं भूल सका हूँ।
वहाँ से हम दोनों मुश्किल से 25-30 कदम ही आगे गए होंगे कि हमें वो तीनों हाइकर्स दिखाई दिए। ज़मीन पर सीधे लेटे हुए, जैसे आराम से सो रहे हों। फर्क बस इतना था कि वो तीनों ज़िंदा नहीं थे। और तीनों के ही चेहरों की खाल उतरी हुई थी। जैसे सेब को चाकू से छीला जाता है, वैसे ही उन तीनों के चेहरों की खाल खींचकर निकाली गई थी। लेकिन आसपास कोई खून नहीं था। न उन लाशों को किसी जानवर ने खाया था। तीनों बॉडीज़ बिलकुल सीधी लेटी हुई थीं। उनके कपड़े, जैकेट्स, हाथों में ग्लव्स वगैरह सब कुछ अभी भी वैसे के वैसे थे। मैं आपको बताऊं कि मैंने अपनी ज़िंदगी में आज तक बहुत लाशें देखी हैं। लेकिन वो… वो मंज़र कुछ और ही था। ये सब कुछ बिलकुल भी सामान्य नहीं था। पता नहीं उनके साथ क्या हुआ था।
मैं मन ही मन उनके लिए भगवान से प्रार्थना कर रहा था। लेकिन मैं जानता था, इस जंगल में भगवान नहीं है। फिर किसी तरह हमने बेस पर कॉल करके बैकअप बुलाया और उन तीनों लाशों को वहाँ से निकाला।
रात में रुकने के लिए हमारे बेस पर ही हमारे रूम बने थे। हर एक रेंजर का अलग रूम था। ड्यूटी करने के बाद कुछ रेंजर्स तो अपने घर चले जाते थे, जबकि कुछ बेस पर ही रुक जाते थे। उस रात मैं और एक दूसरा रेंजर रात में बेस पर ही रुके हुए थे।
और जैसा कि मैंने बताया कि तब तक मुझे इस नौकरी में मुश्किल से 7-8 महीने ही हुए थे, इसलिए ये सब देखकर मैं बहुत परेशान था। बार-बार आँखों के सामने वही तीनों लाशें घूम रही थीं। मुझे हैरानी थी कि बाकी के जो पुराने रेंजर्स थे, उनको इस बात से ज्यादा कुछ फर्क नहीं पड़ा था। रात में अपने बेड पर लेटा-लेटा मैं सामने खिड़की की तरफ ही देख रहा था। हल्की-हल्की बर्फ अभी भी गिर रही थी।
अब मैं आपको बताऊं, मुझे नहीं पता ये मेरा वहम था या क्या, लेकिन मुझे ऐसा लग रहा था जैसे ठंड में शीशे पर जो फ़्रॉस्ट बनती है, वो फ़्रॉस्ट बिलकुल परफेक्ट शेप में बनी लग रही थी। जैसे किसी ने हाथ से बनाई हो। जितनी बार उनको देखता, ऐसा लगता जैसे कोई मुझे लिखकर कुछ बताने की कोशिश कर रहा है। शायद मेरा वहम हो। लेकिन मुझे नहीं लगता वो मेरा वहम था।
पूरी रात सामान्य बीत गई। फिर सुबह आँख खुली तो मैंने अपनी घड़ी में समय देखा। सुबह के 7 बजकर 42 मिनट का समय था। तब तक दूसरा रेंजर बेस से अपने घर जा चुका था। क्योंकि जंगल वैसे ही आम जनता के लिए बंद था, इसलिए ज्यादा स्टाफ की भी जरूरत नहीं थी। अब क्या हुआ कि मैं बेड से उठकर बस बैठा ही था कि तभी, मेरे दरवाज़े पर खटखट हुई। कौन हो सकता है…? मुझे बड़ी हैरानी हुई। क्योंकि जहां तक मुझे पता था, उस दिन और किसी रेंजर की ड्यूटी नहीं लगी थी। मैंने अंदर से आवाज़ देकर पूछा, कौन है?
“ये मैं हूँ… टॉम वेस्ट स्टेशन से।” बाहर से आवाज़ आई।
जंगल के वेस्ट स्टेशन में भी हमारा एक छोटा सा बेस था, जहाँ टॉम नाम का एक दूसरा रेंजर पोस्ट किया गया था। मैंने दरवाजा खोल दिया। तो बाहर वही खड़ा था… टॉम।
“हाय पॉल… क्या हाल है?” वो बोला।
पता नहीं क्यों, मुझे उसे देखकर बहुत अजीब सा लग रहा था। उसके बात करने का तरीका भी अजीब था। अननेचुरल। और सबसे अजीब बात, टॉम जिस स्टेशन पर ड्यूटी करता था, वो यहाँ से 15 किलोमीटर दूर था। उसका यूं अचानक यहाँ आने का कोई मतलब नहीं था। लेकिन, था तो ये टॉम ही। बिलकुल उसी के जैसा दिखने में।
मैंने उसे अंदर आने दिया। अंदर आकर हम टेबल के आमने-सामने कुर्सियों पर बैठ गए।
इस साल तो बर्फ कुछ ज़्यादा ही पड़ रही है ना… वो बोला।
मैंने कहा, “क्या पता… मेरे लिए तो यही पहला साल है।”
बात करते-करते मैं ध्यान से उसकी तरफ देख रहा था। उसकी यूनिफॉर्म बहुत ढीली लग रही थी, जैसे वो उसके साइज़ की ना हो। और उसकी बॉडी के जोड़ों को देखकर पता नहीं क्यों, मुझे कुछ बहुत अजीब लग रहा था।
“तो टॉम, घर में सब कैसे हैं? तुम्हारी वाइफ कैसी है? सब ठीक है ना?” मैंने पूछा।
वो बोला, “हाँ… सब अच्छे हैं। वाइफ भी बिल्कुल ठीक है।”
टॉम की शादी नहीं हुई थी। उसकी कोई वाइफ नहीं थी। मतलब ये कि मेरे सामने जो भी बैठा था, वो टॉम नहीं था। ये समझ आते ही मेरी जान हलक में आ गई। लेकिन मुझे घबराना नहीं था। अब मुझे समझ आ रहा था कि ये क्यों मुझे इतना अजीब लग रहा था। जो भी ये था, या यूँ कहूँ, जो कुछ भी था, ये टॉम की खाल ओढ़कर बैठा था।
न जाने ये क्या बला थी। मेरी एक ग़लती और हो सकता था कि मेरे साथ भी वही होता जो उन कैंपर्स के साथ हुआ था। मैं सामान्य रहने का अभिनय करता रहा।
“टॉम, तुम यहीं रुको, मैं अंदर किचन से कुछ खाने के लिए लेके आता हूँ,” इतना कहकर मैं उठा और अंदर अपने कमरे में चला गया। अंदर से गेट लॉक कर लिया।
गेट लॉक करके सबसे पहले मैंने अपनी पिस्टल उठाई और रेडियो फोन में वेस्ट स्टेशन कॉल करके टॉम के बारे में पता किया। तब पता चला कि वो तो वहीं स्टेशन पर ही था।
ये बात सुनते ही शक की कोई गुंजाइश नहीं थी कि बाहर जो भी बैठा था, वो कोई बहुरूपिया था। मैंने कहा, “मुझे तुरंत बैकअप चाहिए।”
तो करीब एक घंटे बाद उस स्टेशन से 4-5 रेंजर्स हमारे यहाँ पहुँच गए। उनके आने में लगा तो बस एक ही घंटा था, लेकिन वो हर एक मिनट मुझे एक-एक दिन जितना लंबा लग रहा था। मुझे इतना डर लग रहा था कि मैं बता नहीं सकता। ऐसा लग रहा था जैसे अभी वो दरवाजा तोड़कर अंदर आएगा और मुझे चीर डालेगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
करीब एक घंटे बाद बाकी रेंजर्स आए, तो अंदर कोई नहीं था। मुझे नहीं पता वो किस समय वहाँ से गया। ना ही मैंने उसके जाने की कोई आवाज़ सुनी थी। रेंजर्स ने मुझसे पूछा भी, “तुम्हें क्या हुआ था? बैकअप क्यों बुलाया?”
मैंने उन्हें कुछ नहीं बताया। बताता भी तो क्या? बस बोल दिया कि “वो जंगली बिल्लियों का कोई झुंड आ गया था, इसलिए मैं डर गया।”
वो लोग हँसने लगे। लेकिन ये सोचकर कि मैं नया हूँ, उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं कहा।
उस दिन से पहले मैंने सुना तो था कि जंगल में न जाने किस-किस तरह की बलाएँ रहती हैं। लेकिन उस दिन मैंने अपनी आँखों से दिन-दहाड़े उस चीज़ का सामना किया था।
वो दिन था और आज का दिन है। मैं कभी इस जंगल को हल्के में नहीं लेता। ड्यूटी के दौरान हर समय मेरी आँख और कान खुले रहते हैं।
हालाँकि उसके बाद भी मेरा सामना कई डरावनी चीज़ों से हुआ है, लेकिन उस जैसा कुछ नहीं था। मैं अपने आप को किस्मत वाला समझता हूँ कि उस दिन मेरी जान बच गई।
===============================
मेरा नाम सामंथा है। और मैंने 6 साल तक अमेरिका के ग्रैंड कैन्यन नेशनल पार्क नाम के जंगल में फॉरेस्ट रेंजर का काम किया है। करीब 3 साल पहले मैंने यह नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने का ऐसा कोई खास कारण तो नहीं है, लेकिन 6 साल तक जंगल में काम करते हुए मुझे यह महसूस हुआ कि यह काम मेरे लिए नहीं है। मैं अब यह सब और नहीं झेल सकती थी। इसीलिए आखिर में मैंने यह नौकरी छोड़ना ही अपने लिए बेहतर समझा। सच बताऊं तो इस काम को छोड़ने के बाद मैं अब उन सब चीजों को याद करना पसंद नहीं करती। लेकिन आज मैं आपको एक ऐसी घटना के बारे में बताने जा रही हूं, जिसे याद करके आज भी मेरे दिल में डर आ जाता है।
मैं उन दिनों जंगल में जूनियर रेंजर के तौर पर काम करती थी। नौकरी ज्वाइन किए हुए कुछ ही हफ्ते हुए थे। तो एक बार हमें रिपोर्ट मिली कि जंगल के इलाके में अजीब-अजीब सी चीखने की आवाजें सुनी गई हैं। यहां मैं आपको बता दूं कि यह कोई नई बात नहीं थी। इस जंगल के कई इलाकों में जंगली बिल्लियां रहती हैं, जिन्हें माउंटेन लायन्स कहा जाता है। इन बिल्लियों की आवाज बिल्कुल ऐसी होती है, जैसे कोई औरत जोर-जोर से चिल्ला रही हो। इसीलिए, जब हमें इस तरह की रिपोर्ट मिली, तो मैंने सुनते ही समझ लिया कि यहां पक्का कोई जंगली बिल्लियों का झुंड आ गया होगा। लेकिन फिर भी, एक बार चेक करके आना जरूरी था। इसके लिए मेरी ड्यूटी लगाई गई।
लेकिन फिर क्या हुआ कि जब मैं वहां जाने लगी, तो हमारा कैप्टन बोला कि वह भी मेरे साथ चलेगा। मुझे यह बात बहुत अजीब लगी, कि इतना सीनियर रेंजर इतनी छोटी सी चीज़ के लिए जंगल में जा रहा है। मैंने सोचा शायद मैं नई हूं, इसलिए वह चाहता होगा कि वह मेरे काम को मॉनिटर करे। मैंने ज्यादा कुछ नहीं सोचा। हम दोनों आराम से इधर-उधर की बातें करते हुए आगे बढ़ रहे थे। हालांकि मैं थोड़ा सा नर्वस थी, क्योंकि वह मेरा ऑफिसर था। लेकिन वह सामान्य रूप से मुझसे बातें कर रहा था।
इस बीच उसने मुझसे एक बात कही, जिसे तब तो मैंने इतना सीरियस नहीं लिया था, लेकिन अगले 6 सालों में मुझे समझ आया कि कैप्टन की कही वह बात कितनी ज़रूरी थी। उसने मुझसे कहा था कि इन जंगलों में छोटे से छोटे काम को भी कभी हल्के में मत लेना। हमेशा अपने आस-पास की चीज़ों को नोटिस करते रहना। उस वक्त तो मुझे इस बात का इतना मतलब समझ नहीं आया था, लेकिन आज सोचती हूं तो समझ आता है कि उसकी वह बात कितनी गहरी थी।
खैर, पैदल चलते-चलते हम उस इलाके में पहुंच गए, जहां से वह आवाजें आने की रिपोर्ट मिली थी। उस इलाके में हम जंगली बिल्लियों के वहां होने का कोई सबूत ढूंढने की कोशिश कर रहे थे, जैसे उनके कदमों के निशान, उनके शरीर के बाल वगैरह। लेकिन ऐसा कुछ दिख नहीं रहा था। तभी हमें आगे कुछ दूर से फिर से किसी जंगली बिल्ली की आवाज़ आई। सच बताऊं, तो आवाज बिलकुल ऐसी थी जैसे सच में कोई औरत रो रही हो। एक बार के लिए तो मेरा कलेजा ही कांप गया।
हम आगे बढ़ते रहे। अब हमें मुश्किल से 10 मिनट ही हुए होंगे कि एकदम से ऐसा लगा जैसे जंगल की सारी आवाजें बंद हो गई हों। जैसे जंगल ने ही सब आवाजों को चूस लिया हो। यहां तक कि मुझे अपनी सांसों की आवाज भी सुनाई देना बंद हो गई थी। मुझे लगा कहीं मैं बहरी तो नहीं हो गई। मैंने अपने कैप्टन की तरफ देखा और देखा कि उसके चेहरे पर भी वही नर्वस एक्सप्रेशन्स थे। लेकिन वह जिस तरह से रिएक्ट कर रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे कि वह जानता हो कि यह सब क्या हो रहा है। शायद पहले भी उसका सामना इस तरह की स्थिति से हो चुका था।
अब मैं आपको बताऊं कि उस वक्त मुझे और कोई आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी, लेकिन अब एक अजीब सी बज़िंग साउंड मेरे कानों में गूंजने लगी। जैसे टेबल पर रखा फोन हल्का-हल्का वाइब्रेट हो रहा हो, वैसे ही आवाज। बल्कि न सिर्फ आवाज, ऐसा लग रहा था जैसे मैं खुद भी वाइब्रेट हो रही हूं। एक पॉइंट तो ऐसा आया कि मुझे लगा यहां कोई तेज़ भूकंप आ रहा है। लेकिन वह भूकंप नहीं था। वह कुछ और था।
और तभी वह मुझे दिखाई दिया। करीब 30 कदम दूर, साइड में पेड़ों के बीच से निकल कर सामने आता हुआ। करीब 7 फीट लंबा, एक पतला सा काला साया। सात फीट से भी ज़्यादा लंबा होगा। लेकिन वह नीचे अजीब ही तरीके से रेंगते हुए धीरे-धीरे हमारी तरफ आ रहा था। अब जाहिर है, मेरी तरह कोई भी होता तो वो सब देखकर डर जाता। मैं तो इतनी बुरी तरह डर गई थी कि बस भागने ही वाली थी, कि तभी मेरे कैप्टन ने ज़ोर से मेरा हाथ पकड़ लिया।
मुझे समझ नहीं आ रहा था, यह क्या कर रहा है, मुझे भागने क्यों नहीं दे रहा। लेकिन फिर कैप्टन ने धीमे से मेरे कान में कहा, “शांत रहो। कोई आवाज मत निकालना। उसकी तरफ देखना मत। उससे बात मत करना। बस धीरे-धीरे चलते रहो। उसकी तरफ देखे बिना।”
ऐसे में कौन शांत रह सकता था! लेकिन मैं जानती थी कि कैप्टन ने अगर कुछ कहा है, तो सोच-समझकर ही कहा होगा। मुझसे तो आगे एक कदम भी नहीं बढ़ाया जा रहा था। क्योंकि मैं जानती थी, वह जो कुछ भी था, मेरे पीछे-पीछे ही रहा है। मुझे नहीं पता, उसके बाद हम कितनी दूर तक गए। वह सबकुछ मेरे लिए एक ट्रान्स जैसा था।
बस इतना याद है कि कुछ देर बाद जंगल की सारी आवाजें एकदम से नॉर्मल हो गईं। मुझे तसल्ली हुई कि मैं बहरी नहीं हो गई हूं। और तभी मेरे कैप्टन ने कहा, “अब तेजी से भाग लो यहां से।”
हम भागे तो नहीं, लेकिन फुल स्पीड में चलते हुए हम वहां से निकल लिए। मैं इतना शॉक में थी कि कांप तो रही थी, लेकिन आंखों से आंसू नहीं निकल रहे थे। लेकिन मेरा कैप्टन ऐसे रिएक्ट कर रहा था जैसे कुछ हुआ ही ना हो। ना उसने इस बारे में मुझसे कोई बात की। बस चुपचाप हम वहां से सीधे अपने बेस पहुंच गए।
लेकिन बेस पर पहुंचने तक मेरे सब्र का बांध टूट गया था। मैं उस पर चिल्लाने लगी, “यह सब क्या था? मुझे बताओ। मुझे जवाब चाहिए!”
तो उसने मुझसे बस इतना ही कहा, “इन जंगलों में कुछ ऐसी चीजें मौजूद हैं, जो यहां तब से हैं जब यहां इंसान भी नहीं थे। ऐसी चीजें, जिन्हें हम समझ नहीं सकते। अगर तुम यह सब हैंडल नहीं कर सकती हो, अभी रिजाइन दो और यह जॉब छोड़कर चली जाओ।”
मैंने जॉब नहीं छोड़ी। क्योंकि उस वक्त मुझे जॉब की सख्त ज़रूरत थी। कुछ ही समय बाद यह भयानक याद भी धुंधली पड़ गई। ऐसा नहीं था कि जंगल में हर समय ऐसी चीजें होती रहती थीं। बल्कि, ज्यादातर तो जंगल में ऐसा कुछ नहीं होता था। मैंने उस जंगल में काम करते हुए अपनी जिंदगी का कुछ बहुत ही अच्छा समय भी बिताया था। लेकिन जब वह जंगल अपना असली रूप दिखाता था, तो लगता था कि आज यह जिंदगी यहीं खत्म हो जाएगी।
ये कहानी आप मेरे YouTube Channel पर भी सुन सकते हैं |
Horror Podcast- Ghost Stories in Hindi. Hindi Horror Stories by Praveen
मेरे YouTube Channel- Hindi Horror Stories को सब्सक्राइब करना न भूलें |
मुझे Instagram पर फॉलो करें |
मुझे Spotify पर सुनें |
मेरा Facebook Page Like करें|
मुझे X पर फॉलो करें |
मेरी ईमेल – hindihorrorstories@praveen
My Second Channel- https://www.youtube.com/@PraveensHorrorWorld
My Horror Animations Channel- https://www.youtube.com/@HHSAPraveen
Home Page पर जाने के लिए यहाँ क्लिक करें |
Real Ghost Stories पढने के लिए यहाँ क्लिक करें |
Mystery Stories पढने के लिए यहाँ क्लिक करें |
Indian Horror Stories पढने के लिए यहाँ क्लिक करें |
Urban Legends के बारे में पढने के लिए यहाँ क्लिक करें |
मेरी वेबसाइट की सभी Horror Stories पढने के लिए यहाँ क्लिक करें |