भूतो की कुछ खौफ्फ्नाक सच्ची कहानियाँ

मेरा नाम अनिरुद्ध है… मैं बिहार के बेतिया शहर का रहने वाला हूँ। आज मैं आपको एक सच्ची कहानी सुनाने जा रहा हूँ जो मेरी मौसी के साथ हुई थी। तो हुआ ऐसा था कि एक बार मेरी मौसी के पड़ोस में एक आंटी रहती थी और उनकी मौत हो गई थी। हमारे यहाँ ऐसा होता है कि किसी घर में कोई मौत होती है तो मौत के १० दिन बाद ३ दिन का भोज होता है। जिसमें पहले ब्राह्मण भोजन होता है और फिर आसपास के सभी लोगों को खाना खिलाया जाता है। तो उनके यहाँ भी आंटी की मौत के १० दिन बाद भोज रखा गया था। वो भोज का पहला दिन था। इसलिए मौसी के घर से उन्होंने सिर्फ मौसा जी को ही खाने के लिए बुलाया था। मतलब मेरी मौसी उनके यहाँ खाने के लिए नहीं गई थी। फिर शाम के समय मौसा उनके यहाँ खाना खा के आए और फिर वो सब सोने के लिए लेट गए। लेकिन फिर रात १२ बजे के करीब मौसी को खिड़की के दुसरी तरफ से किसी की आवाज सुनाई दी। साथ ही बता दूं कि मेरी मौसी का घर के ठीक साइड में रोड थी। और वो आवाज उसी रोड की ओर से आ रही लग रही थी। मौसी गहरी नींद में थी इसलिए पहले उनको समझ नहीं आया लेकिन फिर उन्होंने ध्यान से वो आवाज सुनी तो वो किसी औरत की आवाज थी। वो मौसी को आवाज लगा के कह रही थी, “अरे बहु, सो गई क्या… सो गई क्या तू?” मैं मुन्नी की मौसी हूँ, बता दूं कि मुन्नी उसी लड़की का नाम था जिसकी माँ की मौत अभी १० दिन पहले हुई थी। बाहर से फिर से आवाज आती है, “अरे बहु… मैं मम्मी की मौसी हूँ, आपको खाने के लिए बुलाने आई हूँ… हम आपको खाना भूल गए थे, इसलिए मैं आपको बुलाने आई हूँ।” ये बात सुनके मौसी सोच में पड़ गई कि अखिर यह कौन है जो इतनी देर रात मुझे आवाज दे रही है। और ये जो कोई भी है उसे कैसे पता चला कि मैं इस कमरे में सोई हुई हूँ। और सबसे बड़ी बात कि अगर उन्हें उनको बुलाने के लिए किसी को भेजना ही होता तो वो मुन्नी को भेजते या फिर किसी ऐसे इंसान को जिसको मैं जानती हूँ। यह मुन्नी की मौसी जिन्हें मैं जानती भी नहीं उन्हें क्यों भेजा है। मौसी ये सब सोच ही रही थी कि तभी फिर से बाहर से आवाज आती है, “अरे बहु… मुन्नी भी मेरे साथ आई है। वो साथ वाले घर में गई हुई है। इसलिए मैं तुम्हें बुलाने आई हूँ। चलो जल्दी चलो मेरे साथ। मुझे देर हो रही है।” मौसी को लगा कि पक्का कुछ तो गडबड है। इसलिए मौसी बाहर नहीं गई और उठ के अपने बेड पे ही बैठ गई और यही सब सोचने लगी। लेकिन हैरानी की बात थी कि मौसी जो भी अपने मन में सोच रही थी उसका जवाब तुरंत बाहर से आ जाता था। फिर कई देर बाद तक भी जब मौसी बाहर नहीं गई तो अब वो औरत गुस्से से मौसी को बोली कि तुम मेरे साथ चल रही हो या मैं चली जाऊँ, मुझे देर हो रही है। पहले तो वो आवाज बिल्कुल नॉर्मल थी जैसे किसी इंसान की ही आवाज हो। लेकिन फिर वो आवाज बहुत डरावनी हो गई। अब मौसी को भी बहुत डर लगने लगा। तो मौसी चुपके से मौसा को उठाने लगी। लेकिन मौसा गहरी नींद में थे इसलिए वो नहीं उठे। तो मौसी उठ के उस कमरे से दूसरे कमरे में जाके सो गई। वहाँ उनको कोई आवाज नहीं आई। फिर अगली सुबह जब मेरी मौसी ने मुन्नी के यहाँ पता किया कि रात में कोई उनको बुलाने आया था तो वो लोग बोले कि हम आपको बुलाने तो चाहते थे, लेकिन बुलाने गए नहीं क्यूंकि काफी देर हो गई थी। तो मौसी ने उन्हें रात की बात बताई। लेकिन उन्होंने कहा कि मुन्नी की कोई मौसी ही नहीं है। लेकिन अगर ऐसा था तो फिर वह कौन थी जो रात में उनको बुलाने आई थी। और अगर मौसी उनके साथ चली जाती तो क्या होता। ये कहानी बिल्कुल सच है।

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ये सब जन्माष्टमी से एक दिन पहले हुआ था। तो हुआ यूं था कि उस दिन बहुत हमारे यहां के सारे बच्चे मिलकर हमारी बिल्डिंग की छत की सफाई कर रहे थे। क्योंकि अगले दिन जन्माष्टमी थी। सबने एक देर घंटा सफाई की और जब सब थक गए तो एक-एक करके नीचे जाने लगे। लेकिन मेरा भाई बोला कि मैं थका नहीं हूँ, तुम सब चले जाओ नीचे, मैं अभी नहीं जाऊँगा। तो बाकी सब बच्चे तो वहां से चले गए लेकिन भैया अकेले ऊपर ही थे। इसी बीच ऊपर रहने वाले एक अंकल अचानक से मेरे भाई पे जोर-जोर से चिल्लाने लगे। वो बहुत गुस्से में थे। उन्हें देख के मेरा भाई भी डर गया… वो उंकल गुस्से में मेरे भाई का कॉलर भी पकड़ रहे थे। असल में हुआ यूं था कि उनका एक ज्वेलरी का स्टैंड था जो उनके घर में रखा था। और उसे किसी ने चोरी कर लिया था। उनको लग रहा था कि वो मेरे भाई ने चोरी किया है। लेकिन वो मेरे भाई ने नहीं लिया था। इसी बीच मेरे पापा भी वहां आ गए। पापा और उस अंकल की बहुत बहसबाजी होने लगी। फिर जब पापा को ये बात पता चली कि भईया ने वो स्टैंड चोरी किया है तो वो भी भईया को बुरी तरह मारने लगे। लेकिन फिर भाई ने बताया कि उसका एक दोस्त है जो छत के ऊपर ही रहता है ये उसी ने किया है। पापा को लगा कि वो झूठ बोल रहा है, क्योंकि छत के ऊपर कोई नहीं रहता था। लेकिन ये बताते-बताते ही मेरा भाई बहुत अजीब ही तरह से हरकतें करने लगा। उसके मुंह से झाग निकलने लगे। तो पापा ने जल्दी से उसके मुंह में भगवान का प्रसाद दिया लेकिन मुंह में डालते ही उसने प्रसाद थूक दिया। और देखते ही देखते उसकी तबियत बहुत ख़राब हो गई। अब वो कुछ बोल भी नहीं पा रहा था। पापा ने उसको जल्दी से बिस्तर पर लिटा दिया। फिर करीब एक घंटे बाद जब वो थोड़ा नॉर्मल हुआ तो उसने बताया कि पिछले करीब 6 महीने से उसका एक दोस्त उसके साथ रह रहा है। जो ऊपर छत पे रहता है। उसकी बात सुनके सबको बहुत हैरानी हुई कि ऐसा कौनसा लड़का छत पे रह रहा है वो भी पिछले 6 महीने से। सब लोग सोच में पड़ गए। लेकिन तभी किसी ने बताया कि कुछ टाइम पहले जब ये बिल्डिंग बन रही थी तो इसकी रेलिंग से गिरके एक बच्चे की मौत हो गई थी। और ये पक्का वही बच्चा है जो तब से छत पे ही भटक रहा है। साथ ही बताऊं कि मेरे पापा भी भगत का काम करते हैं। तो भाई की बात सुनके पापा ने अपनी आंखें बंद करके पता किया तो पता चला कि मेरा भाई वाकई में सच कह रहा था। उस छत पे एक बच्चे की आत्मा ही रहती थी। लेकिन वो किसी को नुकसान नहीं pahuchati थी। और उन अंकल का वो स्टैंड भी मेरे भाई और उसके दोस्त ने नहीं बल्कि एक दूसरे बच्चे ने चुराया था। भाई ने भी बताया कि उसका वो दोस्त उसको बहुत सी चीजें खाने को भी देता है। ये बात उसने पहले कभी नहीं बताई थी। मेरे पापा के पास भारी बाबा का एक चिमटा भी है। फिर पापा ने अपने चिमटे को लेकर उस लड़के के भूत से पूछा कि तू मेरे बेटे के पीछे क्यों पड़ा है। तो उस लड़के ने कहा कि तेरा बेटा खुद ही मेरे पास आया था, मैं तो चुपचाप अपनी जगह बैठा था। तेरे बेटे ने मेरे ऊपर टॉयलेट किया था तभी से मैं इसके साथ ही रह रहा हूँ। तो पापा ने बोला कि इससे ग़लती हो गई, आज के बाद ये छत पे नहीं जाएगा, तुम इसको छोड़ दो। लेकिन वो आत्मा भाई को छोड़ने को तैयार ही नहीं हो रही थी। तो पापा ने उसको अपने चिमटे से बहुत मारा जिसके बाद वो लड़का उसका शरीर छोड़ने को तैयार हो गया। जब ये सब कुछ हो रहा था तो मैं वही खड़ी थी। और ये देख के मैं तो बेहोश ही हो गई। फिर जब मुझे होश आया तब तक मेरा भाई ठीक हो चुका था। उस दिन के बाद वो मेरे भाई को भी फिर कभी दिखाई नहीं दिया।

मेरा नाम आकाश है। यह कहानी मेरी बुआ के ससुराल वाले परिवार के एक लड़के के साथ हुई थी। तो हुआ ऐसा था कि उनके परिवार में एक लड़का रहता था, जिसकी उम्र तब 21-22 साल के आसपास थी। वह जॉब करता था। जिस रास्ते से वह घर आता था, उसी रास्ते में एक गड्ढा बना था जिसे हमारे यहाँ की लोकल भाषा में ‘बौरिया’ बोलते हैं। एक रात वह और उसका एक दोस्त दोनों काम से वापस लौट रहे थे। तो जब वे उस गड्ढे के पास पहुंचे तो वहां से उनको एक छोटे बच्चे के रोने की आवाज आने लगी। तब उनका दोस्त बोला की चल के देखते हैं की कौन बच्चा रो रहा है। लेकिन वह लड़का उस गड्ढे के बारे में जानता था की ये गड्ढा भूतिया है। उन्होंने अपने दोस्त से उस गड्ढे के पास जाने को मना कर दिया। फिर कुछ दूर जा के उन्होंने अपने दोस्त को बताया की असल में उस गड्ढे के अंदर कोई बुरी बाला रहती है। असल में वो गड्ढा बहुत पुराना था, बहुत पहले लोग उस गड्ढे में से पानी भरा करते थे। लेकिन एक दिन उसमें गिरने से किसी की मौत हो गई। जिसके बाद लोगों ने वहां से पानी भरना बंद कर दिया था। लेकिन इसके बाद भी उस गड्ढे में गिरने की वजह से कई लोगों की मौत हो चुकी है। इसलिए अब वहां के लोगों ने उस रास्ते से निकलने ही बहुत काम कर दिया है। यह कहानी इतनी डरावनी तो नहीं है लेकिन बिल्कुल सच है।

मेरा नाम है मनीष वर्मा और मैं छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले का रहने वाला हूँ। आज मैं आपको मेरे चाचा के साथ घटी एक सच्ची घटना के बारे में बताने जा रहा हूँ। यह घटना लगभग 35-40 साल पहले की है। उन दिनों मेरे घरवाले गाँव में रहते थे। एक बार ऐसा हुआ कि वह नवरात्रि का समय था। गाँव में रामलीला होती थी और मेरे दादा रामलीला में हारमोनियम बजाने का काम करते थे। एक दिन मेरे चाचा भी उनके साथ रामलीला देखने गए थे। रात में रामलीला खत्म होते होते 12-1 बजे गए थे। दादा जी अपने दोस्तों के साथ वही रुकने वाले थे, इसलिए चाचा को वहाँ से अकेले ही अपने घर तक आना था। उनका घर ज्यादा दूर नहीं था, लेकिन वह रास्ता बिल्कुल सुनसान था। बीच में बस 2-3 घर ही पड़ते थे वो भी उस रामलीला वाली जगह के पास थे। वही रास्ते में ही एक बरगद का पेड़ भी था, जिसके साथ में एक संकरा रास्ता था, जिसे गांव में ‘कोलकी’ कहते हैं।

अब चाचा अकेले अकेले वहाँ से जा रहे थे कि कुछ दूर जाने के बाद जब उन्हें बरगद का पेड़ आया तो उसके पास ही रास्ते के बीच कोई बैठा दिखाई दिया। ऐसे यूं इतनी रात बीच रास्ते में किसी को बैठा देख चाचा को थोड़ा अजीब तो लगा लेकिन उनको लगा कि ये उनका दोस्त बलदाऊ है, जो वहीं पास के एक घर में रहता था। उनको लगा कि उनका दोस्त उनके साथ मजाक कर रहा है। तो चाचा ने दूर से ही उसको आवाज लगाई। बोला, “ऐसे मजाक मत कर, और रास्ते से उठ जा।” लेकिन उनके बहुत आवाज लगाने के बाद भी वह जो कोई भी था वहाँ से उठ ही नहीं रहा था। अंधेरे में उसका चेहरा भी दिखाई नहीं दे रहा था और वह उनकी तरफ पीठ करके बैठा था।

फिर चाचा उसके पास गए और मजाक में ही उसे धक्का देकर पलटा दिया। बोला, “साले बलदाऊ, इतनी रात को मुझे डराने के लिए यहाँ क्यों बैठा है। कुछ बोल भी नहीं रहा?” लेकिन असल में वो उनका दोस्त बलदाऊ नहीं था, वह एक मसान था जो उस बरगद के पेड़ पर रहता था। तभी वो मसान वहाँ से उठा और उसने भी चाचा को कई बार उठा के पट्का। चाचा ने उसका चेहरा भी देखा, जो बहुत ही खौफनाक था। लेकिन चाचा किसी तरह भगवान का नाम लेते हुए वहाँ से भाग के अपने घर पहुंच गए। और बिना किसी को कुछ बताए चुपचाप सो गए। लेकिन फिर अगली सुबह उन्होंने ये बात सबको बताई तो मेरी दादी ने चाचा को बताया की उस बरगद के पेड़ में एक मसान रहता है जो रात में निकलता है, गांव के बहुत से लोगों ने उसको देखा है।उस दिन के बाद से मेरे चाचा की तबियत खराब रहने लगी। दादा ने उनका बहुत इलाज करवाया लेकिन वह कभी भी ठीक नहीं हो सका। और कुछ ही साल बाद उनकी मौत हो गई। ये पूरी घटना मेरी दादी ने ही मुझे बताई थी।

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मेरा नाम अभय राजपूत है। मैं लखनऊ में रहता हूँ और आज जो कहानी मैं आप लोगों को बता रहा हूँ ये मेरी मौसी की लड़की की है। मेरी माँ की 3 बहनें और 2 भाई हैं और इन सबमें मेरी माँ सबसे छोटी हैं। मेरी जो सबसे बड़ी मौसी हैं उनकी तीन बेटियां और एक बेटा है। तो हुआ ऐसा था की मेरी मौसी की जो सबसे बड़ी बेटी है उसकी शादी जिस लड़के से हुई थी वो लड़का मेंटली बीमार था। तो शादी से करीब एक महीने बाद एक दिन वो दीदी को लेने के लिए उनके घर आ रहे थे। लेकिन जैसा की मैंने बताया वो मेंटली बीमार थे। इसलिए शाम को ही दीदी को पता चला की उनकी ट्रेन एक्सीडेंट में मौत हो गई है। फिर इस घटना के कुछ साल बाद दीदी की शादी एक दूसरे लड़के से कर दी जाती है। इसी के कुछ टाइम बाद उनकी छोटी वाली बहन की भी शादी तय हो जाती है। हमारे यहां ऐसा होता है की शादी से पहले लड़की के हाथ पे एक धागा बांधा जाता है जिससे उसे बुरी नजर न लगे और ऊपरी चीजें भी दूर रहे। दीदी के हाथ पे भी वो धागा बांधा गया था। लेकिन फिर क्या हुआ की जिस दिन दीदी की शादी थी उसी दिन उनके हाथ से वो धागा न जाने कैसे टूट गया, और दीदी को पता भी नहीं चला की धागा उनके हाथ से निकल गया है। तो जब शादी की रस्म चल रही थी तो बैठे-बैठे दीदी अचानक अजीब ही तरीके से हिलने लगी और जोर-जोर से चिल्लाने लगी। ये देख मेरे बड़े भाइयों और मौसा ने उनको पकड़ लिया। उनको पकड़ते ही दीदी को पता नहीं क्या हुआ, दीद एक आदमी की आवाज़ में चिल्लाने लगी की इसकी शादी नहीं होगी। तो मौसा ने उससे पूछा, क्यों.. कौन हो तुम.. तो वो वैसे ही किसी आदमी की आवाज़ में बड़ी वाली मौसी की तरफ देखके जोर-जोर से चिल्लाने लगी। वो बड़ी दीदी का नाम लेके उनको बुला रही थी। दीदी उनकी आवाज़ सुनते ही समझ गई की ये तो उन्हीं के पहले वाले पति की आवाज़ है। छोटी दीदी के अंदर बड़ी दीदी के पहले वाले पति की आत्मा आ गई थी। वो बोला की तुमने तो दूसरी शादी कर ली लेकिन इसको मैं शादी नहीं करने दूंगा। उसको मैं अपने साथ लेके जाऊंगा। मेरे छोटे मौसा जो वहीं खड़े थे उन्होंने जल्दी से पीपल के पत्ते लिए और दीदी के दोनों कानों में लगा दिए। ऐसा करते ही दीदी बेहोश हो गई। वो उनकी शादी का दिन था। कुछ ही देर बाद फेरे भी होने वाले थे। इसलिए घरवाले सब यही चाह रहे थे की किसी तरह बस फेरे हो जाएं। लेकिन फिर थोड़ी देर बाद वो फिर से दीदी के अंदर आ गया, बोलने लगा की आज मैं इसको मार दूंगा.. इसकी शादी नहीं होने दूंगा। सब लोग परेशान हो गए। फिर वहां जो पंडित जी थे उन्होंने उससे पूछा की तू कौन है और यहां क्यों आया है। तो उसने दीदी के मुंह से बोला की कुछ दिन पहले ये शादी का कार्ड देने ट्रेन से कहीं गई थी। और जिस स्टेशन पे ये उतरी थी वो वही स्टेशन था जहाँ मैं एक्सीडेंट में मारा था। और वहीं से मैं इसके पीछे लग गया, अब मैं इसको नहीं छोड़ूंगा। पंडित जी ने भी उससे बहुत बोला की तू इसको छोड़ दे। लेकिन वो बिल्कुल तैयार ही नहीं हो रहा था। बार-बार यही बोले जा रहा था की वो इसको मारके ले जाएगा। फिर पंडित जी ने एक कलावे पे कुछ मंत्र पढ़ के दीदी के हाथ पे बांध दिया जिसके बाद वो नॉर्मल हो गई। और उनके फेरे भी हो गए। फिर विदाई के बाद वो अपने ससुराल पहुंची और वहां कुछ रसम वगेरा पूरी करके जब वो अपने कमरे में जाने लगी तो उनका हाथ में बंधा वो कलावा फिर से अपने आप खुल गया। उसके खुलते ही दीदी ऊपर जीने से ही नीचे कूद गई। उन्होंने जल्दी से मौसा जी को कॉल करके बुलाया। मौसा जी वहां पहुंचे तो देखा की वो अजीब ही तरीके से कुछ-कुछ बड़बड़ाये जा रही थी। और मौसा जी को मतलब अपने पिताजी को देखते ही उन्होंने उनको एक थप्पड़ मार दिया। और थप्पड़ मारते ही वो बेहोश हो गई। ये सब देखके उनके ससुराल वालों ने उनको वापिस उनके मायके भेज दिया बोला जब ये ठीक हो जाए तब इसको ले आना। इसके बाद मौसा-मौसी उसको बहुत सारे मंदिर-मजारों में भी लेके गये। बहुत से बाबाओं को दिखाया। लेकिन वो दीदी को छोड़ने को तैयार ही नहीं हो रहा था। दीदी की तबियत भी दिन पर दिन खराब होती जा रही थी। तो आखिर में वो लोग उनको बालाजी के मंदिर में लेके गये। बालाजी मंदिर एक बहुत ही धार्मिक मंदिर है। वहां के पुजारी ने दीदी के उपर कुछ मंत्र पढ़े तो मेरी दीदी जोर-जोर से चिलाने लगी और उन सबको उल्टा-सीधा बोलने लगी। लेकिन फिर बहुत कोशिश करने के बाद उन पंडित जी ने उसकी आत्मा को बाहर निकाल दिया। और दीदी को एक धागा बांधने को दिया। बोला इस धागे को कभी मत उतारना। इसके बाद दीदी बिलकुल ठीक हो गई। वो धागा उन्होंने आज भी पहना हुआ है।.

मेरा नाम गौरव है। मैं जम्मू के जनीपुर इलाके में रहता हूँ। मैं कई सालों से आपके चैनल पर कहानियाँ सुनता आ रहा हूँ और पहले भी अपनी एक असली कहानी आपको भेज चुका हूँ। आज मैं आपको २ घटनाओं के बारे में बताने जा रहा हूँ। ये पहला इंसिडेंट अभी कुछ ही दिन पहले मेरी पत्नी के साथ हुआ था। तो हुआ ऐसा था की अभी कुछ दिन पहले जम्मू में बहुत ज्यादा गर्मी पड़ रही थी। उन्ही दिनों मेरी पत्नी अपने मायके रहने गई थी। तो एक दिन उनके घरवालों ने घूमने जाने का प्लान बनाया। वो लोग शुद्ध महादेव मंदिर में घूमने गए थे। शुद्ध महादेव जो कि उधमपुर-चेन्नई हाइवे पर पड़ता है और जम्मू से करीब ९० किलोमीटर दूर है। तो हुआ यूँ की जब वो लोग वहाँ दर्शन करके वापस आ रहे थे तो रास्ते में बहुत ट्रैफिक था, शाम करीब ६-७ बजे का समय होगा। साथ ही बताऊं की वो सारा पहाड़ी इलाका है। तो जब उनकी कार जाम में रुकी तो मेरी पत्नी ने देखा की कुछ और टूरिस्ट जो वहाँ आए हुए थे वो सामने एक जगह पर फोटो खींच रहे थे, मेरी पत्नी कार में खिड़की के बगल में बैठी उन सबको देख रही थी।

तभी उसने देखा की उन सब टूरिस्ट्स के बगल में ही एक औरत भी खड़ी थी, जिसने दुल्हन के कपड़े पहने थे। वो भी ठीक उसी प्वाइंट पर खड़ी थी जहां पे वो सब टूरिस्ट्स खड़े थे। ये बहुत अजीब बात थी की ऐसी जगह पे कोई औरत यौन दुल्हन के लिबास में क्यूँ आएगी। ऊपर से मेरी पत्नी ने जब उसे ध्यान से देखा तोड़ कहा की उसकी आँखें बिलकुल सफेद थी। ये देखते ही वो एकदम से डर गई। और आवाज़ लगा के आगे बैठी मेरी मम्मी को बताने लगी। लेकिन उसने मम्मी को बताने के लिए जैसे ही आवाज़ लगाई तभी वो औरत एक झटके से उसी की तरफ देखने लगी, जैसे की उसने उसकी आवाज़ सुन ली हो। जो की बिलकुल असंभव था। और सबसे अजीब बात ये थी की जब मम्मी ने और बाकी लोगो ने उस तरफ देखा तो उनको वहाँ कोई औरत दिखाई नहीं दे रही थी। ना ही उस प्वाइंट पे बाकी जो टूरिस्ट्स थे वो उस औरत को देख के रिएक्ट कर रहे थे, मतलब उनको भी वो औरत दिखाई नहीं रही थी। वो सिर्फ मेरी पत्नी को ही दिख रही थी। इसके बाद वो लोग सही सलामत घर तो पहुंच गए लेकिन इस घटना के बाद मेरी पत्नी बहुत ज्यादा डर गई थी।

ये दूसरी कहानी मेरे नाना की है। ज्यादा डरावनी तो नहीं है लेकिन बिलकुल सच है। और ये आज से करीब ४५ साल पहले की बात है। जब मेरे नानाजी जवान हुआ करते थे। नाना फौज में थे। तो हुआ यूं की

एक बार नाना के बड़े बेटे मतलब मेरे बड़े मामा का जन्म हुआ था। तो नाना इस खुशी में अपने ससुराल मिठाई देने और ये खुशखबरी देने के लिए जा रहे थे। उन दिनों फोन वगेरा भी नहीं होते थे और न ही गाड़ियाँ वगेरा इतनी होती थीं। तो उस दिन मेरे नाना दिन में अपना सारा काम निपटा के शाम के समय अपने ससुराल जाने के लिए पैदल पैदल निकल गए। नानी ने उनको मना भी किया की शाम के समय मत जाओ, छुबह चले जाना। लेकिन नाना फौजी आदमी थे इसलिए मजबूत दिल के थे। कुछ देर चलने के बाद रात भी हो गई। उन दिनों अंधेरा होते ही रास्ते बिलकुल सुनसान हो जाते थे। कुछ घंटे चलते रहने के बाद नानाजी एक खेत के रास्ते से जा रहे थे। तभी उनको ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई उनके पीछे-पीछे आ रहा है। लेकिन उन्होंने पीछे मुड़के नहीं देखा। तभी उनको पीछे से आवाज़ आई। “ओए.. कहां जा रहा है इतनी रात को?” नाना बोले.. “अपने ससुराल जा रहा हूँ।” तो पीछे से उसने जवाब दिया.. “अच्छा.. चल मुझे भी अपने साथ ले चल।”

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नानाजी को ये बात बहुत अजीब लगी की इतनी रात को कोई अनजान आदमी उनके साथ चलने को क्यों बोलेगा। नानाजी को थोड़ा शक होने लगा, की कहीं ये कुछ और ही बाला तो नहीं है। इस बार नाना ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। बस चुपचाप चलते रहे। कुछ ही कदम दूर जाकर उनको रास्ते में एक घर दिखाई दिया। वो एक कच्चा घर था, जो कीचढ़ी के बीच में बना था। वो देख के नाना को थोड़ी राहत महसूस हुई। नाना भाग के उस घर के पास गये और दरवाजा खटखटाया। तो कुछ देर बाद एक आदमी बाहर निकल के आया तो नाना ने उसको सारी बात बताई। “कोई चीज़ आपके पीछे पड़ी हुई है।” नाना ने उस आदमी से बोला की आप ये रास्ता मुझे पार करवा दो। लेकिन उस आदमी ने नाना के साथ जाने को साफ माना कर दिया, शायद इसलिए क्यूंकि वो उस एरिया के बारे में अच्छे से जानता था। वो बोला की मैं तुम्हारे साथ तो नहीं जा सकता लेकिन तुमको एक मशाल बना के दे देता हूँ। इसकी मदद से तुम यहाँ से जा सकते हो। और फिर उसने एक लकड़ी की मशाल जला के नाना को दे दी। अब नाना उस मशाल की रौशनी में कुछ ही दूर गए थे की तभी वहाँ अचानक से तेज तूफ़ान आ गया और वो मशाल बुझ गई। आग बुझते ही वो प्रेत जो उनका पीछा कर रहा था वो फिर से आ गया और इस बार वो सीधा उनके सामने रास्ता रोक के खड़ा था। नाना ने देखा की वो कम से कम १०-१२ फ़ीट लम्बा था और उसका चेहरा बिलकुल काला था। उसकी नाक भी बहुत लंबी थी

। फिर वो नाना से बोला.. “तेरे झोले में जो कुछ भी है वो तू खुद मुझे देगा या मैं ही निकाल लूँ…” नाना जी को याद आया की उनके थैले में मिठाई और पकवान रखे थे। नाना समझ गए की ये पक्का इसी वजह से ही मेरे पीछे पड़ा है। तो नाना ने उसी वक़्त उस थैले को अपने सिर से घुमाते हुए पीछे फेंक दीया। सारी मिठाई नीचे जमीन पर गिर गई। और वो प्रेत मिठाइयों देख के उनके ऊपर ऐसे झपट के खाने लगा जैसे ना जाने कितने सालों से भूखा हो। नाना जी उसी वक्त वहाँ से तेज़ी से भागने लगे। कुछ देर बाद नाना अपने ससुराल पहुँच गये। वहाँ पहुँच के नाना ने ये बात सबको बताई तो सब यही बोले की आपको इतनी देर रात नहीं चाहिए था। नाना जी को तेज़ बुख़ार भी आ गया था। नाना ठंड के मारे बुरी तरह कांप रहे थे। फिर उनके ससुराल वालो ने उनको एक ओझा से झाड़ फुंक करवाया और तब जाके नानाजी की तबियत ठीक हुई। आज मेरे नाना इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन जब वो जिंदा थे तब उन्होंने ये बात मुझे बताई थी।

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मैं आपको अपने साथ घटी एक छोटी सी घटना के बारे में बताना चाहता हूँ। मैं एक सरकारी बैंक में नौकरी करता हूँ। और यह बात उस समय की है जब मेरी जॉब लग हाफ्ता हुआ था। मेरी पहली पोस्टिंग बस्तर जिले में लगी थी। इसलिए वहां मैंने और मेरे साथ काम करने वाले एक लड़के ने वहीं एक घर रेंट पर ले रखा था। उस घर में दो कमरे थे। जो बड़ा कमरा था उसे उस दूसरे लड़के ने लिया और छोटा कमरा मैंने लिया था। मेरे कमरे में ही एक छोटे बच्चे की मेज़ लगी हुई थी जो शायद पिछले किरायेदार की होगी। साथ ही मेरे बाथरूम में एक वॉशिंग मशीन भी रखी थी। वो मशीन ऐसे लगी थी कि जब उसका प्लग लगा होता था तो बाथरूम का दरवाजा नहीं बंद होता था। फ्राइडे का दिन था और उस घर में वो हमारी पहली रात थी। रात में सोते-सोते अचानक मेरी आंख खुली तो मैंने देखा कि सामने बाथरूम की लाइट जली हुई है। और वॉशिंग मशीन की तार भी लगी हुई थी जिससे बाथरूम का दरवाजा खुला था। लेटे-लेटे ही मैंने देखा कि अंदर बाथरूम में एक औरत खड़ी है और सीधा मेरी तरफ ही देख रही है। लेकिन उसका चेहरा ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था। मुझे बहुत हैरानी हुई। तो मैंने उठ के उसको ठीक से देखने की कोशिश की लेकिन तभी वो एकदम बहुत ही स्पीड से भाग के मेरे सामने आ गई। जैसे फ़िल्मों में होता है। और तभी मेरी आंख खुल गई। मैं सपना देख रहा था। लेकिन मैंने उसका चेहरा देख लिया था। अगली सुबह उठ के मैंने ये बात मम्मी को बताई तो मम्मी ने पूछा कि क्या उसका फेस डरावना था… मैंने कहा नहीं… फेस तो बिल्कुल किसी नॉर्मल बुढ़ी औरत के जैसा ही था। मैंने कहा शायद इस घर में पहले कोई बुढ़ी औरत रहती होगी। उसने मेरे कुछ नहीं बिगाड़ा। अब वो वापस नहीं आएगी। मैंने अपनी मम्मी से कहा।

इसी बीच शाम होते होते मुझे कॉल आई कि मुझे 80 किमी दूर एक रूरल ब्रांच में जाना है… वहां जगह ऐसी थी कि वहां कोई मैनेजर जॉइन नहीं करता था… इसलिए वहां एक हफ्ते की लिए ही ड्यूटी लगती थी। तो मंडे को मैं उस ब्रांच में गया। फिर जब मैं अपनी मैनेजर वाली कुर्सी पे जा के बैठा तो देखा कि सामने एक पासबुक रखी हुई थी। उसमें एक फोटो भी लगी थी। फोटो देख के मुझे लग रहा था जैसे मैंने ये चेहरा कहीं देखा है। लेकिन याद नहीं आ रहा था। फिर अगले दिन बुधवार को मैं ब्रांच में गया तो देखा कि एक छोटी बच्ची सरपंच के साथ वहां आई हुई थी। पता चला कि उसकी दादी की मृत्यु हो गई है और उनका पैसा वो दिया जाना था। मैंने उनकी पासबुक मांगी तो उसी पासबुक थी जो मेरे टेबल पर रखी थी। इस बार मैंने वो पासबुक उठा के ध्यान से देखी तो देखते ही मुझे याद आ गया कि उसमें लगी फोटो किसकी थी। ये उसी बुढ़ी औरत की फोटो थी जिसको मैंने 2 रात पहले अपने सपने में देखा था।

मैंने तुरंत उसके पेपर लेके पूरा मामला सेटल कर दिया। पता नहीं उस बुढ़ी औरत को फ्राइडे रात को ही ये कैसे पता चला कि मैं ही उस ब्रांच में जाने वाला हूँ जबकि वहां किसी की भी ड्यूटी लग सकती थी। मेरे मैनेजर ने जिसने मुझे वहां जाने के लिए कहा था तब तक तो उसको भी नहीं पता था कि मुझे वहां डिप्यूट किया जाएगा। क्यूंकि ये डिसीजन ऊपर रीजनल ऑफिस से होता है। पता नहीं कैसे उस बुढ़ी औरत की आत्मा को पहले से ही सब कुछ पता चल गया था।

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