असम की खौफ्फ्नाक घटना – सच्ची भूतिया कहानियाँ

असम की खौफ्फ्नाक घटना - सच्ची भूतिया कहानियाँ

मेरा नाम नवरूप बनर्जी है। मैं आपको अपनी मां से जुड़ी एक खौफनाक दास्तां के बारे में बताने जा रहा हूं। मेरी मां का नाम निवेदिता बनर्जी है। यह बात सन 1993 की है, मेरी बड़ी मौसी की शादी होने वाली थी जो कि असम के माईबोंग जिले में रहती थीं। हम लोग भी असल में असम के ही रहने वाले हैं। और जैसा कि normally शादियों में होता है, हमारे घर में भी एक त्यौहार का सा माहौल बन गया था। धूमधाम से शादी की तैयारियां चल रही थीं। मेरी मां और उनके भाई-बहन तब पहली बार माईबोंग गए थे, इसलिए उनका वहां घूमने जाने का बहुत मन था। वहां वे लोग कई जगहों पर घूमने गए। लेकिन एक दिन वे लोग एक ऐसी जगह पहुँच गए जहां मेरी मां को एक बुरी शक्ति ने पकड़ लिया। वह माईबोंग में ही एक जगह थी जहां एक पत्थर पर नक्काशी करके उसके ऊपर एक घर बनाया गया था। जैसे हम किसी सोने की ज्वेलरी पर डिज़ाइन चढ़ाते हैं वैसे ही उस बड़े पत्थर के ऊपर एक घर को बनाया गया था। ठीक उस घर के पीछे बहुत सारे पहाड़ थे और एक बहुत सुंदर झरना भी था। लेकिन लोगों ने बताया कि वह झरना भूतिया है, वहां जाना ठीक नहीं है। जो भी उस झरने के पानी में जाता है उसके साथ कुछ न कुछ बुरा ही होता है। लेकिन मेरी मां और उनके भाई-बहन तब छोटे और नासमझ थे, उन्होंने लोगों की बातों पर ध्यान नहीं दिया और उस झरने में खेलने के लिए चले गए। लेकिन उनको ये अंदाजा भी नहीं था कि उन्होंने कितनी बड़ी गलती कर दी है। वे लोग वहां से सही-सलामत घर वापस आ जाते हैं। उसके बाद उनकी मौसी की शादी भी ठीकठाक हो जाती है और मम्मी अपने घर वापस आ जाती हैं। लेकिन अपने घर आते ही मां को बहुत तेज बुखार हो जाता है। उनका पूरा शरीर इतना गरम हो जाता है जैसे कि उन्हें किसी गरम तवे पर बैठा रखा हो। मां को बार-बार उल्टियां भी हो रही थीं। मां को बहुत सारे डॉक्टर्स को दिखाया, लेकिन कोई खास फायदा नहीं हुआ। मां कुछ दिनों के लिए ठीक हो जातीं लेकिन तबियत फिर से खराब हो जाती। धीरे-धीरे उनकी तबियत और खराब होने लगी। उनको ऐसा लगता जैसे पूरा घर उन्हें दबोच रहा है। कई बार मां को ऐसा लगता जैसे कोई उन्हें बुला रहा है और वह आवाज़ हमेशा उनके किसी जानने वाले की होती थी। जैसे कभी उनकी मां की आवाज़ होती तो कभी उनके किसी दोस्त की, और वह आवाज़ सुनकर मां अपने आप को रोक नहीं पाती थीं। मम्मी बाहर जातीं देखने के लिए कि कौन उन्हें आवाज़ दे रहा है लेकिन बाहर कोई नहीं होता। लेकिन मम्मी बाहर तो जाती थीं लेकिन कभी घर के बाहर कदम नहीं रखती थीं। मम्मी को देखकर नाना-दादा बहुत परेशान हो गए थे। आखिर में नानाजी फैसला करते हैं कि वे अपने एक जानने वाले तांत्रिक को घर में बुलाएंगे और उनसे मम्मी का इलाज करवाएंगे। वह तांत्रिक काली माता के बहुत बड़े साधक थे और बताते हैं कि खुद मां काली ने उन्हें इंसान के रूप में दर्शन देते हुए खिचड़ी पकाकर खिलाई थी। फिर एक दिन वो तांत्रिक बाबा घर पे आते हैं, मम्मी को देखते ही कहते हैं कि शुक्र है तुमने मुझे यहां बुला लिया। नहीं तो अगर तुम थोड़ी देर और देते तो शायद इसकी जान भी जा सकती थी। इसके ऊपर एक बुरी शक्ति की नजर पड़ गई है और वह जल्दी ही इसकी जान लेने वाली है। वह तो इसकी किस्मत अच्छी है कि वह बुरी शक्ति अभी इस पर पूरी तरह से हावी नहीं हो पाई, नहीं तो यह उसी दिन मर जाती जब यह उस झरने के पास गई थी। उन्होंने नाना से कहा कि तुम जल्द से जल्द घर पे काली पूजा करवाने की तैयारी करो। अगले दिन अमावस्या थी। उसी दिन रात को पूजन शुरू किया जाता है। फिर पूजा के बाद तांत्रिक बाबा ने मम्मी को एक ताबीज़ दिया और कहा कि इसे अगले 7-8 सालों तक मत उतारना। जब तक यह ताबीज़ तुम्हारे गले में रहेगा वह बुरी शक्ति तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी। आज मेरी मां हमारे साथ रहती हैं और बिल्कुल ठीक हैं। भला हो उस तांत्रिक बाबा का जिन्होंने मेरी मां को उस बुरी शक्ति से बचाया।

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मेरा नाम आयुष है। मैं West Bengal के North 24 Pargana में रहता हूँ। मैं जो कहानी आपको बताने जा रहा हूँ ये मेरे दादाजी के साथ घटी एक सच्ची घटना है। यह 2008 की बात है। हमारे गाँव में किसी की शादी थी। रात में मेरे दादाजी भी उस शादी में गए हुए थे। रात में दादाजी अकेले ही शादी से अपने घर वापस आ रहे थे। रास्ते में एक आम का बगान पड़ता था। मेरी दादी ने उनको वहां से आने को मना भी किया था क्योंकि लोग बताते हैं कि वो जगह भूतिया है। वहां बहुत सारे भूत-प्रेत और आत्माएँ रहती हैं। लेकिन दादाजी घर जल्दी आने के चक्कर में उसी रास्ते से आ रहे थे। साथ में दादाजी अपने साथ शादी से एक पैकेट में चिकन भी ला रहे थे। अब दादाजी साइकिल पर आ ही रहे थे कि अचानक उन्होंने महसूस किया कि उनकी साइकिल धीरे-धीरे भारी होती जा रही है और कुछ ही देर बाद उनकी साइकिल इतनी भारी हो गई कि अब वो साइकिल चला भी नहीं पा रहे थे। तो दादा ने पीछे मुड़कर देखा तो देखा कि एक परछाई उनकी साइकिल का पीछा कर रही थी। पहले तो उनको लगा कि वो शायद उन्हीं की परछाई है, लेकिन फिर उन्होंने नोटिस किया कि उनके हिलने-डुलने पर भी वो परछाई हिल नहीं रही थी। ये देख के दादाजी बहुत डर गए और तेजी से साइकिल भगाने लगे। दादाजी को थोड़ा सा चिकन भी निकाल के वहीं फेंक दिया। उसके बाद कुछ देर तक तो उस परछाई ने उनका पीछा छोड़ दिया लेकिन फिर अचानक से वो परछाई फिर से उनके पीछे आ गई और दादाजी को जोर से धक्का मार के गिरा दिया। दादाजी जल्दी से उठे और वो पूरा चिकन का पैकेट वहीं फेंक दिया और फिर किसी तरह सही-सलामत अपने घर वापस आए।

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मेरा नाम आशिष है। मैं Chhattisgarh के Pandariya का रहने वाला हूँ। मैं आपको एक सच्ची घटना के बारे में बताना चाहता हूँ जो मुझे मेरी दादी ने बताई थी। मेरी दादी 70 साल की हैं। एक दिन दादी हमारे घर आई थीं। हम सब TV देख रहे थे जिसमें बड़े-बड़े इंसानों के बारे में बताया जा रहा था। ऐसे इंसान जो 10-10 feet तक लंबे होते हैं। वो देख के दादी बोलीं कि ऐसे लोग सच में होते हैं और ये असल में राक्षसों के वंशज होते हैं। दादी की बात सुनके मैं हंसने लगा तो दादी ने मुझे ये बात बताई। तो हुआ ऐसा कि एक बार मेरी बुआ अपने किसी जानने वाले के घर गई थी। उनके यहाँ नया-नया बच्चा हुआ था। जब बुआ उनके यहाँ पहुँची तो देखा कि जो बच्चा अभी-अभी पैदा हुआ था वो अपने आप बड़ा होने लगा। और देखते ही देखते उसकी लंबाई 5 feet से भी ज्यादा हो गई। लेकिन वो वहीं नहीं रुका, उसका शरीर और बड़ा होता जा रहा था। ये देख के सब लोग डर गए और उसको कमरे में बंद कर के वहाँ से बाहर भाग गए। जल्दी से police को भी बुलाया गया। उस बच्चे को देख के police वाले भी डर गए। police ने खिड़की के छेद से उसको कई गोलियाँ मारीं और तब जाकर उसका बड़ा होना बंद हुआ। मेरी दादी ने एक और बात बताई थी वो ये कि बिलासपुर के कलेक्टर ऑफिस में एक बहुत बड़े आदमी की खोपड़ी और कंकाल रखा है, जिसको वहाँ सफ़ाई करने वाले बहुत से लोगों ने भी देखा है। लेकिन वहाँ की सरकार इस बारे में किसी को नहीं बताती।

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